अलिफ लैला – सिंदबाद जहाजी की hindi stories for kids पांचवीं समुद्री यात्रा की कहानी
सिंदबाद बोला ‘मेरी दशा विचित्र थी। चाहे जितनी भी मुसीबत आन पड़े मैं कुछ दिनों के सुख के बाद उसे भूल जाता था और एक नई यात्रा का विचार मेरे मन में हिलोरे मारने लगता था।’
इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ, लेकिन इस बार मैंने अपने मनमुताबिक यात्रा करनी चाही, जिसके लिए मेरा कप्तान तैयार नहीं हुआ। ऐसे में मैंने खुद के लिए एक जहाज बनवाया और निकल पड़ा। जहाज भरने के लिए मेरा माल काफी न था, इसलिए मैंने आसपास के अन्य व्यापारियों को भी मेरे साथ आने को कहा। देखते ही देखते हम गहरे समुद्र में आ गए।
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कई दिनों की यात्रा के बाद हमने आराम करने का सोचा और जहाज को एक निर्जन टापू पर लगाया। वहां मैंने रुख पक्षी का एक अंडा देखा, ये बिल्कुल वैसा ही था जैसा मैंने कुछ दिनों पहले यात्रा के दौरान देखा था।
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मैंने कौतूहल से अन्य व्यापारियों को भी इसके बार में बताया। हम सभी अंडे को देखने पास पहुंचे, तभी उसमें से बच्चा निकल रहा था। चोंच से अंडे को तोड़ने की ठक-ठक आवाज आ रही थी।
जैसे ही बच्चा अंडे से बाहर आया, तो व्यापारियों को सूझा कि क्यों न इस रुख के बच्चे को भूनकर खाएं। वे कुल्हाड़ी उठा लाए और अंडे को तोड़ने लगे। मैं मना करता रहा, लेकिन कोई नहीं माना। किसी ने मेरी एक न सुनी और बच्चे को काट-भून कर खा गए।
कुछ देर बाद हमने देखा चार बड़े-बड़े बादल आ रहे हैं। मैं घबराया और चिल्लाकर बोला ‘जल्दी भागो, रुख पक्षी आ रहे हैं।’ हम जैसे ही जहाज तक पहुंचे हमने देखा कि रुख के माता-पिता वहां आ गए और टूटे अंडे को देखा।
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जमीन पर नन्हें रुख को मरा देखकर वे चित्कार करने लगे। कुछ देर बाद वे मायूस मन से वहां से चले गए। उनके जाते ही हमने वहां से निकलने की तैयारी करने लगे। जैसे ही जहाज वहां से निकलने वाला था, तभी रुख पक्षियों का पूरा झुंड वहां पहुंच गया। उन्होंने पंजों में बड़ी-बड़ी चट्टानें दबा रखी थी। झुंड तेजी से उड़ते हुए हमारी ओर बढ़ा और हम पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए।
एक विशालकाय चट्टान जहाज के ठीक बगल में इतनी तेजी से गिरा कि जहाज जोर-जोर से हिलने लगा। हम सभी डर गए। इतने में दूसरी चट्टान ठीक जहाज के बीचों-बीच गिरी और जहाज दो हिस्सों में बंट गया। क्षण भर में सारा सामान और मनुष्य जलमग्न हो गए। किसी तरह मुझे प्राण रक्षा का मौका मिला। बगल में एक तख्ती तैरती हुई दिखी, मैंने उसका सहारा ले लिया। उसके सहारे मैं किसी तरह टापू पर पहुंचा।
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टापू पर पहुंचने के बाद मैं बहुत थक चुका था। थोड़ी देर आराम के बाद मैं द्वीप देखने और इधर-उधर घूमने लगा। मैंने देखा कि वहां सुंदर फलों से लदे कई बाग थे। जहां कच्चे-पक्के कई तरह के मीठे फल मौजूद थे।
थोड़ी दूरी पर मैंने पाया कि एक सुंदर मीठे पानी का स्त्रोत है। मैं भूखा था इसलिए पहले मैंने मन भर मीठे फलों का आनंद लिया और उसके बाद पानी पीकर आराम फरमाने लगा। मैं एक कोने में लेट गया।
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मैंने सोने की कोशिश की लेकिन नींद नहीं आई। मेरा मन भारी हो रहा था। मन में कई तरह के विचार आ रहे थे। लग रहा था कि अथाह धन-दौलत होने के बावजूद मैंने यात्रा की मूर्खता क्यों की? मैं चाहता तो आराम का जीवन व्यतीत कर सकता था लेकिन अपनी बेवकूफी के कारण मैं आज निर्जन स्थान में फंस गया हूं। यही सब सोचते-सोचते कब आंख लग गई पता न चला।
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अचानक आंख खुली तो मैंने देखा सवेरा हो गया था। मैं झटके से उठा और इधर-उधर देखने लगा। कुछ देर बाद मैंने देखा कि एक कोने में बूढ़ा आदमी बैठा हुआ है। वह बहुत कमजोर मालूम पड़ रहा था। करीब जाकर देखा तो पता लगा कि उसकी कमर के निचले हिस्से में पक्षाघात लगा था।
मैंने सोचा कि हो सकता है यह भी मेरी तरह कोई भूला-भटका यात्री होगा, जिसका जहाज डूब गया होगा। मैं उसके और पास गया और अभिवादन किया। लेकिन सामने से कोई उत्तर नहीं मिला। बुजुर्ग ने केवल सिर हिलाया।
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मैंने उनसे पूछा, ‘आप यहां कैसे पहुंचे?’ बूढ़े ने संकेत में कुछ कहा मैं समझा कि बूढ़ा चाहता है कि वह मेरे कंधों पर चढ़कर फल तोड़े। लेकिन वह ये नहीं चाहता था. दरअसल, वह चाहता था कि मैं उसे कंधे पर बैठाकर नहर पार करा दूं।
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नहर पार जाकर मैंने उसे उतारना चाहा तो बेजान से जान पड़ने वाला बूढ़ा अचानक बलशाली महसूस होने लगा। उसने अपने पैरों से मेरे गर्दन को जोर का जकड़ा हुआ था। मेरी सांस अटकने लगी, ऐसा लगा मानों आंखें बाहर आ जाएगी।
मैं लड़खड़ाने लगा। इतने में बूढ़े ने अपनी पकड़ ढीली की। मेरी जान में जान आई और कुछ देर बाद मैं होश में आया। बूढ़े ने मुझे उठने का इशारा किया और मेरी ओर हाथ बढ़ाया। मेरे अंदर बिल्कुल ताकत नहीं थी। इसलिए मैं नहीं उठ पाया।
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इस पर बूढ़े ने मुझे एक लात मारी। डर से मैं उठ खड़ा हुआ। मैं उसके मुताबिक काम करने को विवश हो गया। वह मुझे पेड़ के पास ले गया। वहां से फल तोड़कर खुद खाया और मुझे भी खाने को कहा।
धीरे-धीरे रात हो आई। बूढ़ा अब भी मेरी गर्दन पर ही था। वह उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरे शरीर में जान बाकी नहीं थी। मैं बैठ गया और उसे कंधे पर लिए ही सो गया। कुछ देर बाद शायद उसकी भी आंख लग गई।
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फिर सुबह उसने मुझे पैर से धक्का मारकर जगाया। वह अब भी मेरे कंधे पर ही था। उस दिन भी मैंने दिनभर उसे द्वीप पर घुमाया और उसके मुताबिक काम करता रहा। मनमानी करने पर बूढ़ा मुझे मारता था इसलिए न चाहते हुए भी मैं उसके अनुसार चल रहा था।
अकबर-बीरबल की कहानी: गलत आदत hindi stories for kids Akbar Birbal Aur Galat Aadat.
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एक वक्त की बात है, बादशाह अकबर किसी एक बात को लेकर बहुत परेशान रहने लगे थे। जब दरबारियों ने उनसे पूछा, तो बादशाह बोले, ‘हमारे शहजादे को अंगूठा चूसने की बुरी आदत पड़ गई है, कई कोशिश के बाद भी हम उनकी यह आदत छुड़ा नहीं पा रहे हैं।’
बादशाह अकबर की परेशानी सुनकर किसी दरबारी ने उन्हें एक फकीर के बारे में बताया, जिसके पास हर मर्ज का इलाज था। फिर क्या था, बादशाह ने उस फकीर को दरबार में आने का निमंत्रण दिया।
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जब फकीर दरबार में आया, तो बादशाह अकबर ने उन्हें अपनी परेशानी के बारे में बताया। फकीर ने बादशाह की पूरी बात सुनकर परेशानी को दूर करने का वादा किया और एक हफ्ते का समय मांगा।
जब एक हफ्ते के बाद फकीर दरबार में आया, तो उन्होंने शहजादे को अंगूठा चूसने की बुरी आदत के बारे में प्यार से समझाया और उसके नुकसान भी बताए। फकीर की बातों का शहजादे पर बहुत प्रभाव पड़ा और उसने अंगूठा न चूसने का वादा भी किया।
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सभी दरबारियों ने यह देखा, तो बादशाह से कहा, ‘जब यह काम इतना आसान था, तो फकीर ने इतना समय क्यों लिया। आखिर उसने क्यों दरबार का और आपका समय खराब किया।’ बादशाह दरबारियों की बातों में आ गए और उन्होंने फकीर को दंड देने की ठान ली।
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सभी दरबारी बादशाह का समर्थन कर रहे थे, लेकिन बीरबल चुपचाप था। बीरबल को चुपचाप देख, अकबर ने पूछा, ‘तुम क्यों शांत हो बीरबल?’ बीरबल ने कहा, ‘जहांपनाह गुस्ताखी माफ हो, लेकिन फकीर को सजा देने के स्थान पर उन्हें सम्मानित करना चाहिए और हमें उनसे सीखना चाहिए।’
तब बादशाह ने गुस्से में कहा, ‘तुम हमारे फैसले के खिलाफ जा रहे हो। आखिर तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया, जवाब दो।’
तब बीरबल ने कहा, ‘महाराज पिछली बार जब फकीर दरबार में आए थे, तो उन्हें चूना खाने की बुरी आदत थी। आपकी बातों को सुनकर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने पहले अपनी इस गंदी आदत को छोड़ने का फैसला लिया फिर शहजादे की गंदी आदत छुड़ाई।’
बीरबल की बात सुनकर दरबारियों और बादशाह अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ और सभी ने फकीर से क्षमा मांगकर उसे सम्मानित किया।
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